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सरकारी सिस्टम की बड़ी नाकामी! खंडहर में तब्दील हुई UREDA की करोड़ों की जलविद्युत परियोजना

सरकारी सिस्टम की अनदेखी के चलते योजनाओं की बर्बादी का मंजर देखना हो तो कोटद्वार नगर निगम के अंतर्गत कण्वाश्रम स्थित उरेडा की 50-50 किलोवाट की दो जलविद्युत परियोजनाओं को देखकर इसका अंदाजा लगाया जा सकता है।

उत्तर प्रदेश शासनकाल में बनी परियोजना को स्वत: संचालित करने के बजाए निजी हाथों में थमा दिया गया और नतीजा करोड़ों की लागत से बनी योजना पर ताले लटक गए। उत्तर प्रदेश शासनकाल में आइआइटी रुड़की के सहयोग से बनी योजनाओं को वर्ष 2000 में राज्य गठन के बाद परियोजना संचालन का जिम्मा उत्तराखंड अक्षय ऊर्जा विकास अभिकरण (उरेडा) के पास आ गया।

2003 तक एजेंसी ने योजना का किया संचालन
उरेडा ने योजना संचालन का जिम्मा एक निजी एजेंसी को दे दिया। 2003 तक एजेंसी ने योजना का संचालन किया, लेकिन तकनीकि खराबी के कारण 2003 में इन परियोजनाओं से उत्पादन ठप हो गया। 2014-15 में उरेडा ने करीब दो लाख की लागत से मशीनों की मरम्मत, मशीन कक्ष का जीर्णोद्धार करने के साथ ही विद्युत पोल लगाने का कार्य पूर्ण कर दिया। सरकारी सिस्टम की बड़ी नाकामी! खंडहर में तब्दील हुई UREDA की करोड़ों की जलविद्युत परियोजना

कोटद्वार में उरेडा की जलविद्युत परियोजना देखरेख के अभाव में खंडहर में तब्दील हो गई है। करोड़ों की लागत से बनी यह परियोजना जिसे कभी आईआईटी रुड़की के सहयोग से बनाया गया था आज उपेक्षा का शिकार है। निजी एजेंसी को संचालन सौंपने और तकनीकी खराबी के बाद मरम्मत न होने से परियोजना बर्बाद हो गई। उरेडा ने योजना संचालन का जिम्मा एक निजी एजेंसी को दे दिय

साथ ही दोनों लघु जल विद्युत परियोजनाओं में मीटर भी लगा दिए। तय किया गया कि दोनों परियोजनाओं से उत्पादित होने वाले बिजली को ऊर्जा निगम के जशोधरपुर स्थित 132 केवी विद्युत सब स्टेशन में भेजा जाएगा।साथ ही मीटर रीडिंग के आधार पर निगम से विद्युत दरें वसूलने की तैयारी कर दी। करीब एक वर्ष बाद पुन: योजना के संचालन को विभाग ने निविदाएं आमंत्रित की, लेकिन 2016 में योजनाओं में लगे दो कंट्रोल पैनल खराब हो गए। जब विभागीय अधिकारियों को कंट्रोल पैनल की खराबी का पता चला तब तक काफी देर हो चुकी थी। पैनल का मुआयना करने पहुंची इंजीनियर की टीम ने हाथ खड़े कर दिए।

शासन से धनराशि अवमुक्त नहीं हो पाई

विभाग ने कंट्रोल पैनल को मरम्मत के लिए दिल्ली भेजा, लेकिन वहां भी काम नहीं बन पाया। इसके बाद विभाग के पास नए कंट्रोल पैनल खरीदना ही आखिरी उम्मीद है। लेकिन, नए कंट्रोल पैनल के लिए शासन से धनराशि अवमुक्त नहीं हो पाई। इधर, समय के साथ मशीनें भी जंक खाने लगी व वर्तमान में पूरी योजना खंडहर में तब्दील हो गई

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