जाने कैसे बादलों के दरमियां साजिश हुई, मेरा घर माटी का था मेरे ही घर बारिश हुई…। कुछ ऐसा ही है उत्तराखंड के आपदा प्रभावितों का दर्द, जिसे उन्होंने गुरुवार को अपने बीच आए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ साझा किया।
पीड़ितों से दर्द और तबाही की दास्तान को सुन प्रधानमंत्री की आंखें भी कई बार नम हुईं। प्रधानमंत्री की संवेदनशीलता को इससे ही समझा जा सकता है कि पीड़ितों की आपबीती सुनने के लिए को वह अपनी कुर्सी को उनके पास ही खिसका लाए।
देवभूमि उत्तराखंड से प्रधानमंत्री मोदी का लगाव किसी से छिपा नहीं है। वह उत्तराखंड को अपना दूसरा घर मानते हैं और उसे संवारने से भी पीछे नहीं हैं। बात चाहे राज्य के चहुंमुखी विकास की हो फिर राज्यवासियों के सुख-दुख की, सभी में वह साथ खड़े नजर आते हैं।
अब जबकि उत्तराखंड में आपदा का पहाड़ टूटा है तो वह चुप कैसे बैठ सकते थे। प्रत्येक आपदा के बाद राहत-बचाव कार्यों पर वह नजर बनाए रहे और विपदा की घड़ी में हरसंभव सहयोग दिया।
उत्तरकाशी के धराली में आई आपदा में 25 वर्षीय पुत्र समेत होटल, घर गंवा चुकी कामेश्वरी देवी ने जब खीरगंगा के रास्ते आई तबाही और सबकुछ खत्म होने की दास्तां सुनाई तो प्रधानमंत्री की आंखें भी छलछला उठीं। ऐसा एक नहीं कई बार हुआ। बागेश्वर के पौंसारी के महेश चंद्र ने भी अपने माता-पिता को आपदा में खो दिया था। उनकी आपबीती सुनकर भी प्रधानमंत्री भावुक हो उठे।
पौड़ी जिले के सैंजी गांव के नीलम सिंह भंडारी ने गांव में छह अगस्त को भूस्खलन से हुई तबाही और गांव पर आए संकट को बयां किया। सभी प्रभावितों ने खुलकर अपनी बात रखी। प्रधानमंत्री ने भी सभी को भरोसा दिलाया कि संकट की इस घड़ी में वे उनके साथ हैं। प्रधानमंत्री से मिले आश्वासन से प्रभावितों के मन में सुकून था कि वे अकेले नहीं हैं। केंद्र से लेकर राज्य की सरकार उनके साथ खड़ी है।