ऋषिकेश: ऋषिकेश स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में करोड़ों रुपये के घोटाले का बड़ा मामला सामने आया है। यहां कार्डियोलॉजी विभाग की कोरोनरी केयर यूनिट (सीसीयू) बनाने पर 8 करोड़ से अधिक की राशि खर्च कर दी गई, लेकिन आज तक मरीजों को इसका कोई लाभ नहीं मिला। अब इस मामले की जांच सीबीआई (CBI) ने अपने हाथों में ले ली है और संबंधित अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया है।
जानकारी के अनुसार, साल 2017 में ऋषिकेश एम्स के कार्डियोलॉजी विभाग द्वारा 16 बेड वाली कोरोनरी केयर यूनिट (CCU) तैयार करने की योजना बनाई गई थी। इस पर भारी-भरकम टेंडर जारी कर दिल्ली की कंपनी एम.एस. प्रो मेडिक डिवाइसेस को ठेका दिया गया। कंपनी ने वर्ष 2019-2020 में दो किस्तों में सामान की आपूर्ति की गई थी। ऋषिकेश एम्स ने इस काम के एवज में कंपनी को लगभग 8.08 करोड़ रुपये का भुगतान भी कर दिया था। लेकिन चौंकाने वाली बात यह रही कि एम्स की ओर से इतनी बड़ी रकम खर्च करने के बावजूद यह यूनिट एक दिन भी चालू नहीं हो सकी।
जांच में पाई गई कई गड़बड़ियां
उसके बाद 26 मार्च 2024 को सीबीआई और एम्स अधिकारियों की संयुक्त टीम द्वारा इस मामले जांच की गई, जिसमें कई गंभीर अनियमितताएं सामने आईं। परियोजना के लिए जो चिकित्सा उपकरण खरीदे गए थे, उनकी गुणवत्ता बेहद खराब पाई गई। इनका इस्तेमाल मरीजों की गंभीर देखभाल के लिए किसी भी तरह उपयुक्त नहीं था। सूचीबद्ध कई उपकरण मौके पर मौजूद ही नहीं थे। यानी भुगतान तो हो चुका था, लेकिन सामान या तो दिया ही नहीं गया या बाद में कहीं गायब कर दिया गया। इसके अलावा जो सामान इंस्टॉल किया गया, वह टेंडर की शर्तों और तकनीकी मानकों से मेल नहीं खाता था। यह सीधे-सीधे नियमों की अनदेखी और गड़बड़ी का संकेत है। सबसे गंभीर तथ्य यह सामने आया कि टेंडर से जुड़ी मूल फाइल ही रहस्यमय तरीके से गुम हो गई है। इससे यह आशंका और गहराती है कि घोटाले को छुपाने के लिए दस्तावेज जानबूझकर नष्ट या गायब किए गए।
एसीबी देहरादून में एफआईआर दर्ज
सीबीआई और संयुक्त टीम द्वारा की गई तफ्तीश के बाद बीते 26 सितंबर 2025 को एसीबी देहरादून में एफआईआर दर्ज की गई। एसीबी देहरादून में एम्स ऋषिकेश के पूर्व निदेशक डॉ. रविकांत, पूर्व खरीद अधिकारी डॉ. राजेश पसरीचा, पूर्व स्टोर कीपर रूप सिंह, साथ ही अज्ञात सरकारी कर्मचारियों और कुछ निजी व्यक्तियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज हुआ है।
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